The real cost of war
Our salute to brave heroes
*सुखी रहने का तरीका*
*********************
*एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला-*
*गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए?*
*संत बोले- मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ !*
*“मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।*
*”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!” संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले।*
*कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?*
*शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।*
*उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये।*
*शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला-*
*गुरुजी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”*
*“मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”*
*संत तुकाराम ने प्रश्न किया।*
*“नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था?*
*मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी” शिष्य तत्परता से बोला।*
*"संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।"*
*"मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।*
*शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था ।*
*वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं :-*
*रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि, आठवां दिन तो बना ही नहीं है ।*
*"आइये आज से परिवर्तन आरम्भ करें।"*
मुल्ला नसरुद्दीन गया था ईद की नमाज पढ़ने ईदगाह। जब नमाज करने झुका तो उसके कुर्ते का एक छोर पाजामे में अटका रह गया पीछे। उसके पीछे के आदमी ने देखा, शोभा योग्य नहीं था, तो उसने झटका देकर कमीज को पाजामे से छुटकारा दिला दिया। वह जो पाजामे में अटक गया था छोर,उसको मुक्त कर दिया। मुल्ला नसरुद्दीन ने सोचा, होगा जरूर इसमें कोई राज! नहीं तो क्यों पीछेवाला आदमी झटका देगा! होगा इसमें कोई रिवाज! सो उसने आगेवाले आदमी के कमीज को पकड़कर झटका दिया।
आगेवाले आदमी ने भी सोचा कि शायद नमाज का यह हिस्सा है, सो उसने आगेवाले आदमी की कमीज को पकड़कर झटका दिया। आगेवाला आदमी चौंका,उसने कहा कि क्यों मेरी कमीज को झटका दे रहे हो? उसने कहा कि भाई, मुझसे न पूछो, पीछेवाले से पूछो। पीछेवाले से पूछा; उसने कहा, मुझसे न पूछो, यह मुल्ला नसरुद्दीन जो मेरे पीछे बैठा है! मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा मुझे तो बीच में डालो ही मत! मेरे पीछे जो बैठा है इसी कमबख्त ने मेरी कमीज को झटका दिया। फिर यह सोचकर कि नमाज तो व्यवस्था से करनी चाहिए, मैंने भी झटका दिया। मेरा इसमें कोई हाथ नहीं।
और सदियों—सदियों से ऐसा तुम कर रहे हो। इस करने का नाम चरित्र है। चरित्र है. अनुकरण। न बोध है, न बुद्धि है. न सोचा है, न समझा है, न ध्याया है; और कर रहे हैं
ओशो
एक फकीर बहुत दिनों तक बादशाह के साथ रहा !
बादशाह का बहुत प्रेम उस फकीर पर हो गया। प्रेम भी इतना कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में सुलाता। कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते।
एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक ही फल लगा था।
बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा। बादशाह ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा फकीर को दिया।
फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला, 'बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया। एक
टुकड़ा और दे दें। दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल गया। फकीर ने एक टुकड़ा और बादशाह से मांग लिया। इसी तरह फकीर ने पांच टुकड़े मांग कर खा लिए।
जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो बादशाह ने कहा, 'यह सीमा से बाहर है। आखिर मैं भी तो भूखा हूं। मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।' और सम्राट ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया।
मुंह में रखते ही राजा ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था।
राजा बोला, 'तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?
'
उस फकीर का उत्तर था, 'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं? सब टुकड़े इसलिए लेता गया ताकि आपको पता न चले।
दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो!
आओ कुछ ऐसे रिश्ते रचे...
कुछ हमसे सीखें , कुछ हमे सिखाएं !
इसी उमीद के साथ ...
एक बार एक कुत्ते और गधे के बीच शर्त लगी कि जो जल्दी से जल्दी दौडते हुए दो गाँव आगे रखे एक सिंहासन पर बैठेगा...
वही उस सिंहासन का अधिकारी माना जायेगा, और राज करेगा.
जैसा कि निश्चित हुआ था, दौड शुरू हुई.
कुत्ते को पूरा विश्वास था कि मैं ही जीतूंगा.
क्योंकि ज़ाहिर है इस गधे से तो मैं तेज ही दौडूंगा.
पर अागे किस्मत में क्या लिखा है ... ये कुत्ते को मालूम ही नही था.
शर्त शुरू हुई .
कुत्ता तेजी से दौडने लगा.
पर थोडा ही आगे गया न गया था कि अगली गली के कुत्तों ने उसे लपकना ,नोंचना ,भौंकना शुरू किया.
और ऐसा हर गली, हर चौराहे पर होता रहा..
जैसे तैसे कुत्ता हांफते हांफते सिंहासन के पास पहुंचा..
तो देखता क्या है कि गधा पहले ही से सिंहासन पर विराजमान है.
तो क्या...!
गधा उसके पहले ही वहां पंहुच चुका था... ?
और शर्त जीत कर वह राजा बन चुका था.. !
और ये देखकर
निराश हो चुका कुत्ता बोल पडा..
अगर मेरे ही लोगों ने मुझे आज पीछे न खींचा होता तो आज ये गधा इस सिंहासन पर न बैठा होता ...
तात्पर्य ...
१. अपने लोगों को काॅन्फिडेंस में लो.
२. अपनों को आगे बढने का मौका दो, उन्हें मदद करो.
३. नही तो कल बाहरी गधे हम पर राज करने लगेंगे.
४. पक्का विचार और आत्म परीक्षण करो.
⭐जो मित्र आगे रहकर होटल के बिल का पेमेंट करतें हैं, वो उनके पास खूब पैसा है इसलिये नही ... ⭐
⭐बल्कि इसलिये.. कि उन्हें मित्र पैसों से अधिक प्रिय हैं ⭐
⭐ऐसा नही है कि जो हर काम में आगे रहतें हैं वे मूर्ख होते हैं, बल्कि उन्हें अपनी जवाबदारी का एहसास हरदम बना रहता है इसलिये ⭐
⭐जो लडाई हो चुकने पर पहले क्षमा मांग लेतें हैं, वो इसलिये नही, कि वे गलत थे... बल्कि उन्हें अपने लोगों की परवाह होती है इसलिये.⭐
⭐जो तुम्हे मदद करने के लिये आगे आतें हैं वो तुम्हारा उनपर कोई कर्ज बाकी है इसलिये नही... बल्कि वे तुम्हें अपना मानतें हैं इसलिये⭐
एक ऐसी कहानी जिसे पढ़कर कई लोगोँ के सोचने का नजरिया बदल गया.... अवश्य पढ़ेँ
डा. मार्क एक प्रसिद्ध कैंसर स्पैश्लिस्ट हैं, एक बार किसी सम्मेलन में भाग लेने लिए किसी दूर के शहर जा रहे थे। वहां उनको उनकी नई मैडिकल रिसर्च के महान कार्य के लिए पुरुस्कृत किया जाना था। वे बड़े उत्साहित थे व जल्दी से जल्दी वहां पहुंचना चाहते थे। उन्होंने इस शोध के लिए बहुत मेहनत की थी। बड़ा उतावलापन था, उनका उस पुरुस्कार को पाने के लिए।
उड़ने के लगभग दो घण्टे बाद उनके जहाज़ में तकनीकी खराबी आ गई, जिसके कारण उनके हवाई जहाज को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी। डा. मार्क को लगा कि वे अपने सम्मेलन में सही समय पर नहीं पहुंच पाएंगे, इसलिए उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों से रास्ता पता किया और एक टैक्सी कर ली, सम्मेलन वाले शहर जाने के लिए। उनको पता था की अगली प्लाईट 10 घण्टे बाद है। टैक्सी तो मिली लेकिन ड्राइवर के बिना इसलिए उन्होंने खुद ही टैक्सी चलाने का निर्णय लिया।
जैसे ही उन्होंने यात्रा शुरु की कुछ देर बाद बहुत तेज, आंधी-तूफान शुरु हो गया। रास्ता लगभग दिखना बंद सा हो गया। इस आपा-धापी में वे गलत रास्ते की ओर मुड़ गए। लगभग दो घंटे भटकने के बाद उनको समझ आ गया कि वे रास्ता भटक गए हैं। थक तो वे गए ही थे, भूख भी उन्हें बहुत ज़ोर से लग गई थी। उस सुनसान सड़क पर भोजन की तलाश में वे गाड़ी इधर-उधर चलाने लगे। कुछ दूरी पर उनको एक झोंपड़ी दिखी।
झोंपड़ी के बिल्कुल नजदीक उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी। परेशान से होकर गाड़ी से उतरे और उस छोटे से घर का दरवाज़ा खटखटाया। एक स्त्री ने दरवाज़ा खोला। डा. मार्क ने उन्हें अपनी स्थिति बताई और एक फोन करने की इजाजत मांगी। उस स्त्री ने बताया कि उसके यहां फोन नहीं है। फिर भी उसने उनसे कहा कि आप अंदर आइए और चाय पीजिए। मौसम थोड़ा ठीक हो जाने पर, आगे चले जाना।
भूखे, भीगे और थके हुए डाक्टर ने तुरंत हामी भर दी। उस औरत ने उन्हें बिठाया, बड़े सम्मान के साथ चाय दी व कुछ खाने को दिया। साथ ही उसने कहा, "आइए, खाने से पहले भगवान से प्रार्थना करें और उनका धन्यवाद कर दें।"
डाक्टर उस स्त्री की बात सुन कर मुस्कुरा दिेए और बोले,"मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता। मैं मेहनत पर विश्वास करता हूं। आप अपनी प्रार्थना कर लें।"
टेबल से चाय की चुस्कियां लेते हुए डाक्टर उस स्त्री को देखने लगे जो अपने छोटे से बच्चे के साथ प्रार्थना कर रही थी। उसने कई प्रकार की प्रार्थनाएं की। डाक्टर मार्क को लगा कि हो न हो, इस स्त्री को कुछ समस्या है। जैसे ही वह औरत अपने पूजा के स्थान से उठी, तो डाक्टर ने पूछा,"आपको भगवान से क्या चाहिेए? क्या आपको लगता है कि भगवान आपकी प्रार्थनाएं सुनेंगे?"
उस औरत ने धीमे से उदासी भरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा,"ये मेरा लड़का है और इसको एक रोग है जिसका इलाज डाक्टर मार्क नामक व्यक्ति के पास है परंतु मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैंं उन तक, उनके शहर जा सकूं क्योंकि वे दूर किसी शहर में रहते हैं। यह सच है की कि भगवान ने अभी तक मेरी किसी प्रार्थना का जवाब नहीं दिया किंतु मुझे विश्वास है कि भगवान एक न एक दिन कोई रास्ता बना ही देंगे। वे मेरा विश्वास टूटने नहीं देंगे। वे अवश्य ही मेरे बच्चे का इलाज डा. मार्क से करवा कर इसे स्वस्थ कर देंगे।"
डाक्टर मार्क तो सन्न रह गए। वे कुछ पल बोल ही नहीं पाए। आंखों में आंसू लिए धीरे से बोले,"भगवान बहुत महान हैं।"
(उन्हें सारा घटनाक्रम याद आने लगा। कैसे उन्हें सम्मेलन में जाना था। कैसे उनके जहाज को इस अंजान शहर में आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी। कैसे टैक्सी के लिए ड्राइवर नहीं मिला और वे तूफान की वजह से रास्ता भटक गए और यहां आ गए।)
वे समझ गए कि यह सब इसलिए नहीं हुआ कि भगवान को केवल इस औरत की प्रार्थना का उत्तर देना था बल्कि भगवान उन्हें भी एक मौका देना चाहते थे कि वे भौतिक जीवन में धन कमाने, प्रतिष्ठा कमाने, इत्यादि से ऊपर उठें और असहाय लोगों की सहायता करें।
वे समझ गए की भगवान चाहते हैं कि मैं उन लोगों का इलाज करूं जिनके पास धन तो नहीं है किंतु जिन्हें भगवान पर विश्वास है !
हर इंसान को ये ग़लतफहमी होती है की जो हो रहा है, उस पर उसका कण्ट्रोल है और वह इन्सान ही सब कुछ कर रहा है ।।
पर अचानक ही कोई अनजानी ताकत सबकुछ बदल देती है कुछ ही सेकण्ड्स लगते हैं सबकुछ बदल जाने में फिर हम याद करते हैं परमपिता परमात्मा को।
या ईश्वर को छोड़ दो...
या ईश्वर के ऊपर छोड़ दो